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सोमवार, 28 दिसंबर 2015

शील निगम. आगरा (उ. प्रदेश )में जन्म ६ दिसम्बर , १९५२ . शिक्षा-बी.ए.बी.एड. कवयित्री, कहानी तथा स्क्रिप्ट लेखिका. मुंबई में १५ वर्ष प्रधानाचार्या तथा दस वर्षों तक हिंदी अध्यापन. विद्यार्थी जीवन में अनेक नाटकों,लोकनृत्यों तथा साहित्यिक प्रतियोगिताओं में सफलतापूर्वक प्रतिभाग एवं पुरुस्कृत.
हाल ही में 'प्रतिलिपि.कॉम' में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली कहानी 'रेपिस्ट' पर पुरस्कार प्राप्ति। 
सम्मान-
डॉ आंबेडकर फेलोशिप अवार्ड से सम्मानित. (दिल्ली) "हिंदी गौरव सम्मान से सम्मानित (लंदन )
पता-
पता-बी,४०१/४०२,मधुबन अपार्टमेन्ट, फिशरीस युनीवरसिटी रोड, सात बंगला के पास,वर्सोवा,अंधेरी (पश्चिम),मुंबई-६१. मोबाईल नंबर- 9987464198,9987490692 फोन नम्बर- 022-26364228.
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'ये आँसू'



ये आँसू ... 

पारदर्शी मोती!

सतरंगी किरणों से चमक उठते हैं,

जब खुशगवार होता है मन.... 

मन का ही तो दर्पण हैं ये आँसू,  

झूम-झूम जाता है मन तब, 

जब झर-झर बहते हैं ख़ुशी के आँसू,
यादों के झरोखे से उठती हैं 

मिलन की साँसे … 

झूम झूम जाता है मन तब,

जब झर-झर बहते हैं ख़ुशी के आँसू 

भीग जाता है दामन। 

यही आँसू जब बिखरते हैं 

यादों में, विरह की पीड़ा लिए हुए,

टूट टूट जाता है मन....  

जब झर-झर बहते हैं खून के आँसू 

भीग जाता है दामन। 

काश ! ये आँसू भी अपना रंग छोड़ सकते ...
रंगीन हो जाता दामन 

विरह और मिलन के रंगों से।
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शील निगम (२८. १२. २०१५ ) मुंबई

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

ग़ज़ल

बंदूक से ज़्यादा ख़तरनाक टख़नों से ऊपर चढ़ी मोहरियाँ लग रही हैं।
मुझे तो दुनिया अब ख़त्म  कर देने  की सारी तय्यारियाँ लग रही हैं।

फूल क्यों न खिला अबतक, मैंने तो बड़े जतन से इसको सींचा था,
देखो साज़िश करती हुई, कुसूरवार मुझे  ये क्यारियाँ  लग रही हैं।

जाने कैसा ज़हर हवा  में शामिल  होकर फैलता जा रहा है चुपचाप,
नए-नए असरात हो रहे हैं और रोज़ नई-नई बीमारियाँ लग रही हैं।

होश आने पर देखेंगे  ये मंज़र जब  उजड़ा हुआ तो फिर कुछ न होगा,
अभी तो नशेमन हैं जाने किस नशे की लत की खुमारियाँ लग रही हैं।

है हवा तेज़, शोला बनके दहकेगी एक आग पूरा वतन जल जाएगा।
बुझा दो  इनको  'तनहा'  तुम जो  कहीं  चिनगारियाँ  लग  रही  हैं।

©मोहसिन 'तनहा'