रोज़ अपने ही साए से तो लड़ रहा हूँ मैं ।
समंदर हूँ उतर कर फ़िर चढ़ रहा हूँ मैं ।
आज मेरी राहों में अँधेरे हैं तो क्या हुआ,
रौशनी की तरफ़ ही तो बढ़ रहा हूँ मैं ।
आँधियाँ थम जाएँगी इक रोज़ थककर,
फ़िलहाल उनसे कहाँ उखड़ रहा हूँ मैं ।
रेत पे लिखा नाम हूँ जो मोजें मिटा देंगी,
संग पे बना नक्श हूँ नहीं बिगड़ रहा हूँ मैं ।
समंदर हूँ उतर कर फ़िर चढ़ रहा हूँ मैं ।
आज मेरी राहों में अँधेरे हैं तो क्या हुआ,
रौशनी की तरफ़ ही तो बढ़ रहा हूँ मैं ।
आँधियाँ थम जाएँगी इक रोज़ थककर,
फ़िलहाल उनसे कहाँ उखड़ रहा हूँ मैं ।
रेत पे लिखा नाम हूँ जो मोजें मिटा देंगी,
संग पे बना नक्श हूँ नहीं बिगड़ रहा हूँ मैं ।
लिख
रहा है इबारत मेरे आमालों की तू,
‘तन्हा’ आसमानों को रोज़ पढ़ रहा हूँ मैं ।