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बुधवार, 11 मार्च 2020

हस्तीमल ‘हस्ती’ की ग़ज़लें अम्न, मुहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम

हस्ती जी के साथ डॉ. मोहसिन ख़ान
हस्तीमल ‘हस्ती’ जी ग़ज़ल की दुनिया के जाने-माने शायर हैं, वह न केवल एक बेहतर शायर हैं, बल्कि वह एक बेहतर इंसान भी हैं। बेहतर इंसान इन संदर्भों में कहे जा सकते हैं उनमें मानवीय संवेदनाएं दिखावे के तौर पर मौजूद नहीं हैं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं के साथ खुलकर जीने वाली शख़्सियत उनके भीतर ज़िंदा है और यह शख़्सियत उन्हें अन्य लोगों से विशेष रूप में साहित्य जगत में अपनी चमकती छवि दर्ज कराती हुई दिखाई देती है। मैंने कई अवसरों पर हस्तीमल ‘हस्ती’ जी को बड़ी ही विनम्रता, मानवीय संवेदना और विविध भावों में डूबा हुआ देखा है। यह बात मैं किसी से सुनी-सुनाई नहीं कह रहा हूं, बल्कि मैंने देखा, जाना और परखा है। लगातार उनके संपर्क में कई बातों को लेकर रहा हूं और उन संपर्कों से यह निचोड़ निकला है कि वह एक बेहतर शायर होने के साथ-साथ बेहतर मानवीय संवेदनाओं के इंसान हैं। हस्तीमल ‘हस्ती’ से मेरी पहली मुलाकात मुंबई से थोड़ी दूर पुणे की तरफ स्थित खोपोली शहर के एक कॉलेज में हुई थी, जहां पर उर्दू-हिन्दी का एक सेमिनार आयोजित था। जिसमें उर्दू-हिंदी दोनों की रचनाओं को केंद्रित करके शायर और कवियों को बुलाया गया था, उसमें मैं भी शामिल था। तब उन्होंने उद्घाटन सत्र में अध्यक्षता की भूमिका का निर्वाह किया तभी से मैं उनके संपर्क में निरंतर रहा हूं और कई अवसरों पर उनसे मिलने, सुनने का विशेष लाभ प्राप्त हुआ है, जिसको मैंने कभी गंवाना नहीं चाहा। उनके साहित्य की एक सबसे बड़ी और ख़ास विशेषता यह कही जाएगी कि जगजीत सिंह ने उनकी रचनाओं को गाया है, जिसमें बहुत पहले जब उनकी ग़ज़ल आई थी तब ही मुझे बहुत पसंद आई- 
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है, 
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
तब मैं एम. ए. का छात्र रहा हूंगा और इस ग़ज़ल के लिए मैंने कैसेट को खरीदा। तब उस पर पहली बार मैंने शायर का नाम हस्तीमल ‘हस्ती’ लिखा देखा, उस वक़्त मैं नहीं जानता था कि हस्तीमल ‘हस्ती’ कौन हैं और उनकी हस्ती क्या है? लेकिन अब धीरे-धीरे संपर्क से उनकी हस्ती को मैं जान गया और मैं नाज़ करता हूं कि हमारे समाज में ऐसी शख़्सियत हस्तीमल ‘हस्ती’ जी मौजूद हैं। 
हस्ती मल ‘हस्ती’ जी की कई रचनाओं को पढ़ते हुए मन में कई प्रकार के भाव जगे और उन भावों में डूबता-उतराता हुआ जीवन की न जाने किन गलियों की तरफ मुड़ता रहा और यह सारी गलियां किसी अच्छाई की तरफ़ ले जाती हुई मुझे मालूम होती हैं। जैसा कि स्पष्ट है हस्तीमल जी की दुनिया का पहला भाव मानवता और उसकी विभिन्न स्तर की प्रवृतियां नजर आती हैं, जिसमें वह कहीं पर भी अपने मानवीय स्वभाव को छोड़ना पसंद नहीं करते और दूसरों से भी उम्मीद करते हैं कि आप अगर मानव रूप में जन्म लेते हैं तो मानवता को सदैव बनाए रखें वह अपनी ग़ज़ल में लिखते हैं- 
मुहब्बत का ही इक मोहरा नहीं था, 
तेरी शतरंज पे क्या-क्या नहीं था। 
सज़ा मुझको ही मिलनी थी हमेशा,
मेरे चेहरे जो पे जो चेहरा नहीं था।
हस्ती जी की यह पंक्तियां सिद्ध करती हैं कि आज समाज में लोग चेहरे पर चेहरा चढ़ाए हुए घूम रहे हैं और न जाने कितने चेहरों को लिए वह ऐसा व्यवहार करते हैं। ऐसी अमानवीयता के खिलाफ़ वह डटकर खड़े हुए हैं और सबको यह समझाइश देते हैं कि इस दुनिया में ऐसी बिसात बिछी हुई है जहां पर मुहब्बत नहीं है, केवल चालबाज़ियाँ हैं। लोग ऐसा व्यवहार रखते हैं जिनमें अविश्वास है और धोखाधड़ी है।
उनकी यह पंक्तियां भी देखने लायक हैं, जो मानवीय संबंधों को स्पष्ट करती हैं-
कांच के टुकड़ों को महताब बताने वाले, 
हमको आते नहीं आदाब ज़माने वाले। 
दर्द की कोई दवा ले के सफर पर निकलो, 
जाने मिल जाएँ कहाँ ज़ख्म लगाने वाले।
यह पंक्तियां मानवीय संबंधों के संदर्भ में सच ही नज़र आती हैं कि जीवन में जिससे उम्मीद की जाए वही बदल जाता है और कब कौन कहां ज़ख्म दे दे, चोट पहुंचा दे इसका कोई निश्चित समय नहीं है। जिस तरह से दुनिया अपनी गति में आगे बढ़ रही है, उसमें मानवीय प्रवृतियां कहीं दब गई हैं और एक दिखावटी व्यवहार सब लोगों ने अपने भीतर पैदा कर लिया है। मुंह पर कुछ और दिल में कुछ और रखने वाले लोगों के लिए हस्ती जी की उपरोक्त पंक्तियां करारा जवाब रखती हैं।
इसी संदर्भ में उनकी यह पंक्तियां भी गौर करने लायक है-
ख़ुद अपने जाल में तू आ गया ना, 
सज़ा अपने किए की पा गया ना। 
कहा था ना यकीं मत कर किसी पर 
यकीं करते ही धोखा खा गया ना।
यह पंक्तियां मानवीय चरित्र के उस रूप को दर्शाती है, जहां पर विश्वास टूट रहे हैं कोई कितना ही किसी पर विश्वास करे, लेकिन अंत में विश्वास टूट जाता है। इस टूटे हुए विश्वास से उनका मन भी खंडित हो जाता है, वह अपनी पंक्तियों में सबको चेतावनी देते हैं कि इस तरह का व्यवहार दुनिया का दिन-ब-दिन होता जा रहा है, जहां विश्वास कम और धोखा बढ़ता जा रहा है। इस बात का बेहद अफ़सोस जताते हैं और अपनी ग़ज़ल में वह मानवीय प्रेम की चिंता को निरंतर दर्शाते रहते हैं।
मानवीय संबंध निरंतर बदलते चले जा रहे हैं, पिछली सदी की दुनिया हो या इस सदी की दुनिया। मानवता का धीरे-धीरे ह्रास होता चला जा रहा है, इस बात की भी चिंता निरंतर अपनी ग़ज़लों में करते रहे हैं। न केवल अपनी ग़ज़लों में करते हैं, बल्कि बातचीत के दौरान या किसी विशेष अवसरों पर भी इस बात को वह पुरज़ोर तरीके से उठाते हैं कि क्यों इस दुनिया में हमारे विश्वास टूटते जा रहे हैं? क्यों हम अपने आप में केंद्रित होते चले जा रहे हैं? क्यों विश्वास की मान्यता कमजोर पड़ने लगी है? क्यों हम विश्वास की जगह धोखे पाते जा रहे हैं? इस बात को वह यूँ कहते हैं-
साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना, 
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना। 
सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है, 
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना।
वे असल में स्पष्ट करते हैं कि किसी के भरोसे रहने की कोई ज़रूरत नहीं। यदि किसी के भरोसे रहे तो भरोसा भी टूट जाएगा और वह व्यक्ति भी अकर्मण्य हो जाएगा, इसलिए वह मानवीय प्रेम के साथ कर्मण्यता का भी सन्देश बराबर ज़ाहिर करते रहे हैं और आगे चलने की बात करते रहे हैं। यह आगे चलने वाला सिद्धांत उनको और हमें मानवता की तरफ ही ले जाता है, जो मानवता का संदेश बरसों से दिया जा रहा है यह भी उस संदेश को अपनी रचनाओं के माध्यम से फैलाना बराबर जारी रखते हैं।
जो सच के साथ खड़ा है वह कभी भी झूठ के सामने झुकना नहीं चाहेगा। हस्ती जी अपनी ग़ज़लों में और जीवन में सच के साथ खड़े हैं और झूठ की दीवार को गिराना चाहते हैं। कुछ लोग झूठ की दीवार पर चढ़कर झूठ के सरताज बने हुए हैं, इसलिए उनमें चापलूसी, बदज़ुबानी, बददिमागी और दुर्व्यवहार भरा पड़ा है, लेकिन हस्तीमल जी उस रास्ते पर आगे चल देते हैं, जहां पर मानवता के साथ अस्तित्व और खुद्दारी जुड़ी हुई है। वह चापलूसी, दुर्व्यवहार और लोगों के अपमान से बहुत दूर अपने आप में अस्तित्व और खुद्दारी रखने वाले एक अज़ीम शख़्स हैं जो इन बातों का खुलकर विरोध करते हैं और वह कहते हैं-
चिराग दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं, 
हर एक हाल में तेवर बला के रखते हैं। 
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी, 
जिसे निशाने पे रखते हैं बता के रखते हैं।
यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि एक साफगोई से एक व्यक्ति अपने मन की बात करता है और बराबर लोगों को बताता है कि हम अगर निशाने पर किसी को रखेंगे तो बता कर रखेंगे, पीछे से वार करने वाले लोग नहीं है, क्योंकि हस्तीमल जी में खुद्दारी कूट-कूट कर भरी हुई है।
अस्तित्व के प्रश्न को लेकर भी निरंतर चिंतित नजर आते हैं और इस चिंता से कई बातें ज़ाहिर करते हैं अस्तित्व के संदर्भ में वह कहते हैं-
चाहे जिससे भी वास्ता रखना, 
चल सको उतना फ़ासला रखना। 
चाहे जितनी सजाओ तस्वीरें, 
दरमियां कोई आईना रखना।
यह आईना, वह आईना है जो हर किसी के भीतर मौजूद है। यह वह भीतर का इंसान है जिसे हर किसी को समझना है और यही सदा अपने अस्तित्व को जगाता है। ऐसे भी किसी के आगे झुक नहीं जाना जिससे आपका अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाए इसलिए वह अपनी खुद्दारी को निरंतर बनाए रखने में चिंतित नजर आते हैं। आज दुनिया खुद्दारी की दुश्मन हो चुकी है उसे लगता है कि कोई व्यक्ति खुद्दार है, उसकी खुद्दारी को किस प्रकार तोड़ा जाए? यही एक व्यापार सारी दुनिया में चल रहा है, चाहे दुनिया के बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्ष हों या हमारा पड़ोसी ही क्यों न हो, वह किसी को खुद्दारी के साथ जीने देना नहीं चाहता, जबकि खुद्दारी व्यक्ति का अपना मूल्य है। उनकी यह पंक्तियां विषय के संदर्भ में बड़ी सार्थक नजर आती हैं, वे लिखते हैं-
आ गया जब से समझ में राज़े खुद्दारी मुझे, 
गैर की चौखट लगे हैं उसकी चौखट भी मुझे।
इसी संदर्भ में वह अपनी एक अन्य ग़ज़ल में इस प्रकार से अभिव्यक्ति देते हैं-
ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा, 
मुश्किलों के रूबरू जब हौसला हो जाएगा। 
तुम हवाएँ ले के आओ मैं जलाता हूँ चिराग। 
किसमें कितना दम है यारों फ़ैसला हो जाएगा।
इस प्रकार वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चुनौतियों का सामना करते हैं और न वे केवल चुनौतियों का सामना करते हैं, बल्कि वह चुनौती भी देते हैं। उनकी निगाह में वह व्यक्ति बहुत धनवान है जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता है और उसकी रक्षा करने के लिए हर समय डटा रहता है।
जिस तरह से दुनिया विकसित होती जा रही है, इस विकास में अशांति उतनी ही मात्रा में घुलती जा रही है। हस्ती जी की दुनिया को शांति का संदेश देना चाहते हैं। जैसा कि उन्होंने विरासत में शांति, अमन और समझौते को पसंद किया है। वे इस सद्मार्ग पर हर हाल में चलना चाहते हैं और लोगों को भी उस राह पर ले जाने के लिए आह्वान करते हैं। वह देख रहे हैं कि दुनिया में निरंतर अशांति का बोलबाला होता चला जा रहा है, लेकिन वह इस अशांति को शांति में बदलने के लिए पंक्ति कहते हैं-
उनको पहचाने भी तो कैसे कोई पहचाने,
अम्न चोले में हैं आग लगाने वाले।
यहां हस्तीमल जी बहुत यथार्थ और सच बात को अभिव्यक्ति देते हैं। यह सच है कि आज की दुनिया में अमन को फैलाने वाले जो लोग अगवा बनकर खड़े हुए हैं, वास्तव में वही अमन के दुश्मन हैं, अशांति के पैरोकार बनने वाले लोग यह दिखावा करते हैं कि वह शांति के साथ चल रहे हैं, लेकिन उन्होंने केवल यह शांति का चोला पहन रखा है। वास्तव में तो वह अमन के दुश्मन हैं इस प्रकार की सच और यथार्थ भरी बात भी अपनी ग़ज़लों में निरंतर कहते चले आए हैं। इसी संदर्भ में वह अपने अन्य ग़ज़ल में लिखते हैं- 
ऐसा नहीं कि लोग निभाते नहीं हैं साथ, 
आवाज़ दे के देख फ़सादात के लिए। 
इल्ज़ाम दीजिए न किसी ऐसे शख्स को, 
मुजरिम सभी हैं आज के हालात के लिए।
यह बात सच है कि अशांति कोई एक व्यक्ति, एक समुदाय पैदा नहीं कर रहा है। यह तो चारों तरफ से एक ऐसा भयानक आक्रमण है, जिससे किस दशा में बचा जाए, कोई हाल-ए-सूरत निकल आए? यह समझ नहीं आता है इसलिए वह किसी एक शख्स को अशांति पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराते हैं, बल्कि वे दर्शाते हैं कि सबका कहीं न कहीं अशांति को आगे बढ़ाने में कुप्रयास है। इस कुप्रयास को ख़त्म करके शांति को आगे बढ़ाने का वह आह्वान निरंतर अपनी ग़ज़ल में करते हैं और दर्शाते हैं कि हम शांति को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन अशांति का राज चारों तरफ़ बरकरार है।
निकले हो रास्ता बनाने को, 
तुमने देखा नहीं ज़माने को। 
अम्न तो हम भी चाहते हैं मगर, 
लोग आमादा हैं लड़ाने को।
यह बात सच है कि शांति को कुछ लोग भंग कर रहे हैं और इस भंग की दशा में हस्ती जी चाहते हैं कि मानवता बनी रहे और शांति का मार्ग सब लोग अपनाएं, परंतु कुछ लोग स्वार्थों के लिए अमन का क़त्ल कर रहे हैं और अशांति को बढ़ावा दे रहे हैं। वह चाहते हैं कि ऐसे लोगों का व्यापार रुक जाना चाहिए। वह अपनी ग़ज़ल में बार-बार अशांति की समस्या से संघर्ष करते हुए नज़र आते हैं और इस दुनिया को बहुत ख़ूबसूरत बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं, लिखते हैं-
दार पर मुस्कुरा रहा है, वाह, 
क्या गज़बनाक हौसला है, वाह। 
लब पे अम्नो-अमान की बातें, 
काम दंगे-फ़साद का है वाह।
यह व्यंग्य करती हुई पंक्तियां दोगले चरित्र को चुनौती देती हैं और संकेत देती है कि यह जो लोग शीर्ष पर बैठे हुए हैं और शांति का पाठ निरंतर करते चले जा रहे हैं, वास्तव में उनके पाठ करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि वही अपनी पीठ के पीछे ऐसा धंधा चला रहे हैं जिससे अशांति निरंतर समाज में विद्यमान हो रही है। जब तक यह अशांति विद्यमान होती रहेगी उनका यह झूठा पाठ चलता रहेगा और लोगों को उनके दोहरे चरित्र समझ नहीं पाएंगे। वे ऐसे दोहरे चरित्रों का पर्दाफ़ाश कर देते हैं तथा लोगों को अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल प्रेम, सद्भाव की बात करते हैं, बल्कि शांति की समस्या की ओर भी ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
जिस व्यक्ति के भीतर मानवीय संवेदनाएं, मूल्य, अस्तित्व मौजूद होगा, वह व्यक्ति विनम्र, हितेषी, सद्व्यवहार करने वाला और प्रेम सौंदर्य से भरपूर होगा। हस्तीमल जी भी इस बात के बहुत क़रीब नज़र आते हैं। उनके भीतर प्रेम और सौंदर्य की झलक हमें उनकी ग़ज़लों में अभिव्यक्ति के तौर पर दिखाई देती है। वह जहां दुनिया के यथार्थ को इंगित कर रहे हैं वहीं जीवन में प्रेम और सौंदर्य के पक्ष में बड़ी दृढ़ता के साथ खड़े हुए हैं। उनकी प्रसिद्ध ग़ज़ल-
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है, 
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है। 
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था, 
लंबी दूरी तय करने मैं वक़्त तो लगता है।
यहां उनके निस्वार्थ, सच्चे और रूहानी प्रेम की बात पता चलती है। वह केवल आकर्षण में बंधे हुए व्यक्ति नहीं और न ही रूपवादी होकर जिस्म को पाने की उनके भीतर लालसा है। वह तो प्रेम का मतलब रूह में उतरकर डूब जाना मानते हैं। यही प्रेम की सार्थकता भी है, इस दृशरी से गहरे प्रेम को दर्शाने वाली पंक्तियों की अभिव्यक्ति हुई है और यह पंक्तियां आज साहित्य तथा मोसिकी की दुनिया में मशहूर हो चुकी है।
वे प्रेम को जीवन का मूलभूत आधार मानते हैं। वह इस बात के लिए लोगों को तस्दीक करना चाहते हैं कि कोई कैसा व्यवहार करें और व्यक्ति किन्ही परिस्थितियों में पड़कर, कैसे भी हालात में ढलकर, कैसा भी हो जाए, लेकिन विकृति उसके भीतर न आने पाए इसलिए वह कहते हैं-
सब की सुनना, अपनी करना, 
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना।
यह प्रेम नगर व्यक्ति के भीतर का वह आत्म-तत्व है, जहां व्यक्ति अपने अंदर हर एक के प्रति मानवीता रूपी प्रेम के बीज बोता है और इन बीजों को उगने के लिए वे अपने शब्दों का जल डालते हैं। यह शब्दों का जल आगे चलकर प्रेम की फसल पैदा करता है और चारों तरफ प्रेम का खेत लहलहाता है। उनकी दृष्टि में प्रेम सर्वोपरि है। व्यक्ति में मतभेद हो सकते हैं, आपसी विचारों में कटुताएँ आ सकती हैं, लेकिन इनको महत्व देना वे स्वीकार नहीं करते हैं। वह तो प्रेम को जीवन का आधार मानते हैं और किसी भी दशा में प्रेम को बचाए रखना चाहते हैं। व्यक्ति, व्यक्ति से दूर हो सकता है, नाराज़ हो सकता है, लेकिन कटुता को ही सर्वोपरि मान लिया जाए यह उनके लिए मुमकिन नहीं। इसलिए वह अपनी एक ग़ज़ल के मतले में कहते हैं-
प्यार में उनसे करूँ शिकायत ये कैसे हो सकता है, 
छोड़ दूं मैं आदाबे-मुहब्बत यह कैसे हो सकता है। 
यह आदबे-मुहब्बत उनके लिए महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि ज़रूरी नज़र आती है। वह किसी भी दशा में इंसान से प्रेम करना नहीं छोड़ते हैं। इसी संदर्भ में वह सारी दुनिया को प्रेम का संदेश देते हुए उसे ख़ूबसूरत बनाने के लिए पंक्तियां लिखते हैं-
ख़ुशबुओं से चमन भरा जाए, 
काम फूलों सा कुछ किया जाए।
यह ख़ुशबू कुछ और नहीं, यह ख़ुशबू प्रेम की ख़ुशबू है, जो संसार को और बेहतर बनाने के लिए फैलाई जा रही है। यह ख़ुशबू हर एक इंसान में मौजूद है, लेकिन कुछ इंसान इसकी ख़ुशबू को सूंघ भी नहीं पाते हैं और महसूस भी नहीं कर पाते हैं। हस्तीमल जी अपने भीतर प्रेम की ख़ुशबू को बहुत ठीक ढंग से पहचानते हैं और ज़रूरी समझते हैं कि संसार इस प्रेम की ख़ुशबू को पहचाने और चारों तरफ़ यह ख़ुशबू फैल जाए, ताकि नफ़रतों की बदबू समाप्त हो जाए और यह दुनिया बेहतर से और बेहतर बनती चली जाए।
प्रेम, सौंदर्य के संबंध में वह न केवल मानवी प्रेम की या लौकिक प्रेम की बात करते हैं, वह अध्यात्म तक भी पहुंचते हैं और वह मिथक और पुराख्यानों को भी अपनी ग़ज़लों में समाहित कर लेते हैं। इसी प्रकार की एक ग़ज़ल की चार पंक्तियां इस प्रकार हैं-
दानिशमंदों के झगड़े हैं, 
हम नादां जिस में उलझे हैं। 
हम शबरी के बेर सरीखे, 
जैसे भी हैं प्रेम भरे हैं।
वह अपनी ग़ज़ल में शबरी का पुराख्यान ले आते हैं और शबरी को प्रेम का एक प्रतीक मानते हैं। कहीं न कहीं उनके भीतर इस प्रकार के प्रेम के पात्र बचपन से अब तक मौजूद हैं और वह इस प्रकार के पात्रों का बहुत सम्मान करते हुए उनके चरित्र को टटोलने की कोशिश भी अपनी अभिव्यक्तियों में करते हैं। 
जिस प्रकार से सत्य और ईमानदारी का पाठ सदियों से धर्म ग्रंथों सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक विरासत के रूप में चलता आया है वह सत्य और ईमानदारी के इन पक्षों को अपने भीतर उतार लेते हैं उनके भीतर निरंतर सत्य और ईमानदारी की बात घुलती हुई दिन पर दिन गाढ़ी होती चली जाती है। वह जानते हैं कि यह दुनिया सत्य और ईमानदारी की दुश्मन है, लेकिन वह ऐसे दुश्मनों के सामने डटकर खड़े हुए हैं और निडरता के साथ उनका मुकाबला करते हैं। वह अपनी रचनाओं में इस बात का संदेश देते हैं कि सत्य और ईमानदारी जीवन में हर मोड़ पर होना चाहिए, कभी हमें अपने स्वार्थ के लिए सत्य और ईमानदारी जैसे मूल्यों को छोड़ना नहीं चाहिए। इसलिए वह अपनी कई ग़ज़लों में इस बात को निरंतर अभिव्यक्ति देते हैं लिखते हैं-
लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए, 
सौ आफ़तों का साथ है दिन-रात के लिए। 
उसने उसे फिज़ूल समझकर उड़ा दिया, 
बर्बाद हो चला हूँ मैं जिस बात के लिए।
इन पंक्तियों के माध्यम से देखा जा सकता है कि हस्ती जी सत्य और ईमानदारी को बचाए रखने के लिए संघर्ष का पथ अपनाते हैं और यह बात भी स्वीकार करते हैं कि इस सत्य और ईमानदारी के निर्वाह के लिए सोचो आफ़तें व्यक्ति पर आती हैं, लेकिन इन आफ़तों से घबराना नहीं चाहिए। यह आफ़तें एक उपहार के रूप में आती हैं, जिसे अपने दामन में सजाकर रख लेना चाहिए। इसी संदर्भ में अपनी एक और ग़ज़ल में लिखते हैं जिसका मसला इस प्रकार है-
सच कहना और पत्थर खाना पहले भी था आज भी है, 
बन के मसीहा जान गँवाना पहले भी था आज भी है।
यह बात सच है कि सदियों से सत्य को पत्थर मारा जा रहा है, इमानदारी को कुचला जा रहा है इस बात को वह अपनी ग़ज़ल में स्पष्ट करने के साथ उसके साथ उसके पक्ष को सार्थक मानते हुए पेरवी करते हैं। चाहे पत्थर मारे या सत्य, ईमानदारी को कुचला जाए, उसे हर हाल में बचाना होगा।
जीवन का कोई भी क्षेत्र हो उसमें स्वार्थ के लिए समझौते हो जाएँ, फिर तो आदमी की आदमीयत ही तिरोहित हो जाती है। वे स्वार्थ को त्यागने और समर्पण के महत्व को जगाने की बात करते हैं, इसलिए वह बार-बार अपनी रचनाओं में सत्य की बात करते हुए वकालत करते हैं और कहते हैं-
हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे, 
देर से समझेगा ये ज़माना मुझे। 
सर कटा कर भी सच से न बाज़ आऊँगा, 
चाहे जिस वक़्त भी आज़माना मुझे।
इन पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि वह सत्य और ईमानदारी को बचाने के लिए अपने जीवन की भी परवाह नहीं करते हैं। वह दुनिया की उस अमानवीयता के आगे झुकना नहीं चाहते हैं जहां सत्य के बरक्स लालच, चापलूसी और झूठ खड़ा हुआ है। वह इन सब चीजों को चुनौती देते हुए सत्य का परचम ऊंचा करते हैं और ईमानदारी की भूमि पर दृढ़ता से आगे बढ़ते हैं।
आज झूठी दुनिया में सच बोलना एक जुर्म हो गया है और सच को तरह-तरह से काटा जा रहा है। कभी झूठी गवाही के नाम पर, कभी झूठे फरमानों के नाम पर, कभी मीडिया की चालबाज़ी के नाम पर सत्य को भ्रमित किया जा रहा है, लेकिन हस्ती जी इस सत्य को सत्य बताने के लिए इस बात के लिए आगे आते हैं और अपनी जान जोखिम में डालकर बेपरवाह होकर सत्य के पक्ष में कहते हैं
सच के हक़ में खड़ा हुआ जाए, 
जुर्म भी है तो यह किया जाए।
वास्तव में आज की दुनिया इतनी विषैली हो गई है कि जो विषधारी नहीं है, उनके सिर कुचल दिए जा रहे हैं और जो सच के हक़ में खड़े हुए हैं उनको विद्रोही करार दिया जा रहा है, लेकिन इस प्रकार की प्रवृतियों से हस्ती जी घबराते नहीं है। वह सच के हक़ में खड़े हुए बेबाकी से हैं और न केवल खड़े हुए वह दृढ़ता से सच के साथ बराबर आगे बढ़ते हुए भी दिखाई देते हैं।
हस्ती जी केवल मानवीयता, प्रेम, संवेदना, अस्तित्व, शांति और ईमानदारी के ही शायर  नहीं हैं, बल्कि उनकी दृष्टि बराबर वर्तमान जगत के यथार्थ पर भी बनी हुई है। वह जानते हैं कि वर्तमान कई विडंबना उसे भरा पड़ा है और इन विडंबनाओं में व्यवस्था एक ऐसा पक्ष है जिससे संघर्ष करके उसे सुधारना ही लाज़मी होगा। इस सुधार के पीछे बहुत सारी चुनौतियां भी उन्हें नज़र आती हैं और इन चुनौतियों से डरकर दूर नहीं जाते, बल्कि उनसे संघर्ष करते हुए हैं और अन्य से भी यहीअपेक्षा रखते हैं। उनके ग़ज़ल संग्रह में कई ग़ज़लें व्यवस्थाओं के प्रति आक्रोश और चुनौतियां दर्शाती हुई प्रतिनिधित्व करती हैं। वह इन चुनौतियों का सामना करते हुए व्यवस्था के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं और कहते हैं-
राजा को समझाने निकला, 
अपनी जान गँवाने निकला। 
सारी बस्ती राख हुई तब, 
बादल आग बुझाने निकला।
यह बात मामूली बात नहीं है, वह अपनी खुली हुई आंखों से यह मंज़र निरंतर देख रहे हैं और उन्हें यह बात नज़र आ रही है कि यहां जो तख़्त पर बैठा हुआ है, जो सब पर राज कर रहा है उसकी गलतियां बताना आम आदमी के हक़ से दूर हुई बात नजर आती है। आज व्यवस्था इतनी विद्रूप, विडंबनापूर्ण, भयानक और पेचीदा हो गई है कि हमारा सरमाएदार तानाशाह बन है। उसे उसकी गलतियां या उसकी कमियां गिनाई नहीं जा सकती हैं। यदि यह कमियां गिनाई जाएंगी तो गिनाने वाला व्यक्ति विद्रोही और देशद्रोही कहलाएगा। प्रशासन व्यवस्था बिगड़ी हुई है और औपचारिकता से भरी हुई नज़र आती है कि जब जो घटना घट जाती है उसका कोई असर व्यवस्था, शासन-प्रशासन पर नहीं होता है और न ही किसी को उस घटना से कोई राहत पहुंचाने के लिए शासन व्यवस्था आगे आती है । वह इस बात को अपनी एक और ग़ज़ल में इस प्रकार ढालते हैं-
काम करेगी उसकी धार, 
बाकी लोहा है बेकार। 
सारे तुगलक़ चुन-चुन कर, 
हमने बनाई है सरकार।
यहां वे शासन और प्रशासन व्यवस्था पर सीधा कटाक्ष फेंकते हैं और एक दुनिया की सत्य उजागर करते हैं कि शासन और प्रशासन व्यवस्था को जितना मुस्तैद रहकर जनहित कार्य करना चाहिए वह व्यवस्था उतनी ही विरोध में बेशर्मी से खड़ी हुई है। इसलिए कहीं उनकी रचनाओं में व्यंग्य की धार पैनी होकर भी आ गई है और यह तल्खी बहुत अच्छी भी लगती है। हर रचनाकार के लिए ज़रूरी है कि वह व्यवस्था और चुनोतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने का मार्ग अपनाए और व्यवस्थाओं का सुधार करने के लिए अपनी अभिव्यक्ति देना चाहिए, जो हस्तीमल हस्ती जी में बराबर मौजूद है। इसलिए उन्हें यथार्थ जीवन का चेतना संपन्न शायर भी कहना उचित होगा।
इसी तरह से व्यवस्थाओं के एक सच को वह सामने लाते हैं और दर्शाते हैं कि जिस तरह से प्रजातंत्र में नई-नई क़िस्म के झूठ के प्रयोग चल रहे हैं, वह हमें वास्तव में ठगने वाले ही प्रयोग हैं। बार-बार सामान्य जनता को उसकी तरक्की के सपने दिखाए जाते हैं और अंत में निराशा ही हाथ लगती है। जीवन जिस तरह से विडंबनाओं से घिरा हुआ है जहां टूटन, त्रास, अवमूल्यन, हिंसा, अपमान और आपाधापी मची हुई है, सरकार इसे अपने पक्ष में बराबर मज़बूत बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्प है। वह लोकतंत्र की ऐसी लचर व्यवस्था पर आक्षेप उठाते हुए कहते हैं-
कुछ नए सपने दिखाए जाएँगे, 
झुनझुने फिर से थमाए जाएँगे। 
आग की दरकार है फिर से उन्हें, 
फिर हमारे घर जलाए जाएंगे।
इस प्रकार से उनकी रचनाओं में आक्रोश, व्यवस्था विरोध, राजनीति पर व्यंग्य और चुनौतियां दिखाई देती हैं जो उन्हें विविधता का शायर बनाती है। वह किसी एक ट्रेक पर चलकर रचना करने वाले शायर नहीं हैं, बल्कि वे उन सारी गतिविधियों पर अपनी नज़र गड़ाए हुए हैं, जो मानव और मानवता के खिलाफ लगती है। वे निरंतर अपने सृजनशील संसार में व्यस्त रहते हुए इस बात की आशा करते हैं कि इस दुनिया को बेहतर बनाना होगा और समानता को क़ायम करना होगा। वह चाहते हैं कि हर एक आदमी को उसका हक बराबर रूप में मिले। यह दुनिया ख़ूबसूरत बने, कहीं धोखाधड़ी, अमानवीयतापन, हिंसा, अशांति न रहे और मनुष्य अपनी खुद्दारी के साथ जीवन जीते हुए उन मूल्यों की ओर अग्रसर रहे जो मानव जीवन के लिए अनिवार्य हैं। उनके भीतर से निकली हुई आवाज़ जब भी कभी किताबों के वर्कों पर लफ़्ज़ों के रूप में उभरकर आती है, वह किसी आयत से कम नहीं लगती है। उनके भीतर प्रेम, शांति और मानवीयता का ऐसा भाव है, जो वे अपनी शायरी में उतारकर लाते हैं और सबको अपनाने के लिए संदेश भी देते हैं। 
हस्ती जी जितने जीवन के व्यवहार में खुले हुए हैं, सबके साथ सद्व्यवहार रखने वाले और समभाव रखने वाले हैं, उसी प्रकार से इनकी ग़ज़लों में भी शब्दों का कोई बंधन नहीं है। वह जहां अरबी, फ़ारसी, तुर्की इत्यादि शब्दों का उर्दू के रूप में इस्तेमाल करते हैं, वहीं वे हिंदी शब्दों से भी परहेज़ नहीं करते हैं। वह अपनी ग़ज़लों में शब्दों के समायोजन और सामासिकता को महत्व देते हैं, वे साझी शाब्दिक तहज़ीब में विश्वास रखते हैं। जैसे विषयों में वैविध्य है वैसे ही लफ़्ज़ों के इस्तेमाल में भी वेराइटी है, इसलिए उनकी ग़ज़लों में सभी प्रकार के शब्द हमें दिखाई देते हैं, जिसमें हिंदी के शब्द भी अपनी ख़ूबसूरती के साथ शामिल हो चुके हैं। जैसे होम, शालाओं, सुभाव, जल, बांसुरी, स्नेह, युग, अंतर्मन, भगवानों, सपने, चक्र, प्रेम, शिखर इत्यादि। यह ऐसे शब्द हैं जो ग़ज़ल में फ़िट होकर कहीं भी अटपटे नहीं लगते हैं, बल्कि इन शब्दों के माध्यम से ग़ज़ल रोजमर्रा की जिंदगी को अभिव्यक्त करने में और भी सशक्त अभिव्यक्ति क्षमता से भर जाती है। माना जा सकता है कि आज के दौर के शायरों में हस्तीमल ‘हस्ती’ जी अपनी विशिष्ट छवि लेकर ग़ज़ल की दुनिया में जगमग आ रहे हैं, जिनका संपूर्ण साहित्य न केवल समाज में रोशनी बिखेर रहा है, बल्कि समाज को एक  सत्य पर राह जाता है, जिस पर चलकर समाज और भी सुंदर बनता है तथा सारी दुनिया खुशियों से भर जाती है।
डॉ. मोहसिन ख़ान
स्नातकोत्तर हिन्दी विभागाध्यक्ष 
जे. एस. एम. महाविद्यालय,
अलीबाग़-जिला-रायगढ़
(महाराष्ट्र) ४०२  २०१
 मोबाइल-०९८६०६५७९७० / ०८७९३८१६५३९ 
ई – मेल : Khanhind01@gmail.com           
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   अलीबाग़-जिला-रायगढ़                                                                              
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