संभल जाता हूँ मैं चाहे डगर चिकनी हो।
भले आदत लाख बहकने की अपनी हो।
कम बोलो और सोच, समझ के बोलो तुम,
लेकिन जब बोलो बात तो बात वज़नी हो।
मुक़ाबला किया डट के हार की फ़िक्र किसे,
अगर शोहरत हो मेरी तो तेरी जितनी हो।
झूठ बोलूंगा नहीं किसी दबाव में आकर,
तेरी तरफ़ से भले ही साज़िश कितनी हो।
झुकाउंगा नहीं सिर मैं सामने 'तनहा' तेरे,
ये गर्दन कट जाए चाहे जब कटनी हो।
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©मोहसिन 'तनहा'🇮🇳
भले आदत लाख बहकने की अपनी हो।
कम बोलो और सोच, समझ के बोलो तुम,
लेकिन जब बोलो बात तो बात वज़नी हो।
मुक़ाबला किया डट के हार की फ़िक्र किसे,
अगर शोहरत हो मेरी तो तेरी जितनी हो।
झूठ बोलूंगा नहीं किसी दबाव में आकर,
तेरी तरफ़ से भले ही साज़िश कितनी हो।
झुकाउंगा नहीं सिर मैं सामने 'तनहा' तेरे,
ये गर्दन कट जाए चाहे जब कटनी हो।
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©मोहसिन 'तनहा'🇮🇳